अब उस जमाने से निकल कर, कहीं दूर जाना चाहती हूं। अपने हिसाब से एक नया जमाना बनाना चाहती हूं, क्योंकि वास्तव में मैं परिवर्तन चाहती हूं। - प्रीती_द्विवेदी
Saturday, April 6, 2019
पिंजरे की कैद में...
पिंजरे की कैद में...
चली हूं लोगों को रिझाने,
पिंजरे की कैद में,
यहां सब पर भरोसा है मुझे,
पर मुझ पर नहीं किसी को,
इसलिए तो हूं मैं,
पिंजरे की कैद में ।
- प्रीती द्विवेदी
चली हूं लोगों को रिझाने,
पिंजरे की कैद में,
यहां सब पर भरोसा है मुझे,
पर मुझ पर नहीं किसी को,
इसलिए तो हूं मैं,
पिंजरे की कैद में ।
- प्रीती द्विवेदी
बस अब नहीं
बस अब नहीं...
ऐ वक्त ले चल कहीं,
जहां कोई सीमा न हो,
न हो कोई पाबंदी,
ले चल मुझे वहीं।।
- प्रीती द्विवेदी
ऐ वक्त ले चल कहीं,
जहां कोई सीमा न हो,
न हो कोई पाबंदी,
ले चल मुझे वहीं।।
- प्रीती द्विवेदी
Subscribe to:
Posts (Atom)
दुनिया के नियम
मुझे लौटा दो मेरा बचपन, जहाँ महसूस होता था एक अपनापन, बिना चिंता के काम किया करती थी, क्योंकि माँ-बाप पर निर्भर रहा करती थी | बड़ी होकर...
-
मुझे लौटा दो मेरा बचपन, जहाँ महसूस होता था एक अपनापन, बिना चिंता के काम किया करती थी, क्योंकि माँ-बाप पर निर्भर रहा करती थी | बड़ी होकर...
-
ऊपर से हंसती हूं तो क्या,अंदर से टूट चुकी हूं। तेरे खातिर मैं अपना सब कुछ भूल चुकी हूं। ...
-
अम्मा एक शिशु के रूप में आई थी, तेरी कोख में समाई थी, इस दुनिया में जब आई थी, तेरी गोद ही मुझे भाई थी, प्यारा सा एक नाम दिया, सम्मान...