बस अब नहीं...
ऐ वक्त ले चल कहीं,
जहां कोई सीमा न हो,
न हो कोई पाबंदी,
ले चल मुझे वहीं।।
- प्रीती द्विवेदी
ऐ वक्त ले चल कहीं,
जहां कोई सीमा न हो,
न हो कोई पाबंदी,
ले चल मुझे वहीं।।
- प्रीती द्विवेदी
अब उस जमाने से निकल कर, कहीं दूर जाना चाहती हूं। अपने हिसाब से एक नया जमाना बनाना चाहती हूं, क्योंकि वास्तव में मैं परिवर्तन चाहती हूं। - प्रीती_द्विवेदी
मुझे लौटा दो मेरा बचपन, जहाँ महसूस होता था एक अपनापन, बिना चिंता के काम किया करती थी, क्योंकि माँ-बाप पर निर्भर रहा करती थी | बड़ी होकर...
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